नारद कहि समुझाइ कंस नृपराज कौं 5 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



कूदि परयौ चढ़ि कदम तैं खबरि न करो सवेर।
त्राहि-त्राहि करि नंद, तुरत दौरे जमुना-तट।
जसुमति सुनि यह बात, चली रोवति तोरति लट।
ब्रजबासी नर-नारि सब, अति ब्याकुल मुरझाइ।
जहँ-जहँ परी पुकार, कान्ह बिनु भए उदासी।
कौन काहि सौं कहै, अतिहिं ब्याकुल ब्रजवासी।
नंद-जसोदा अति बिकल, परत जमुन मैं धाइ।
और गोप उपनंद मिलि, बाँह पकरि लै आइ।
धेनु फिरत बिललाति बच्छ थन कोउ न लगावै।
नंद जसोदा कहत, कान्ह बिनु कौन चरावै।
यह सुनि ब्रजवासी सबै, परे घरनि अकुलाइ।
हाय-हाय करि कहत सब, कान्ह रह्यौ कहँ जाइ।
नंद पुकारत रोइ बुढ़ाई मैं मोहिं छाँड़यौ।
कछु दिन मोह लगाइ, जाइ-जल-भीतर माँड़यौ।
यह कहि कै धरनी गिरत, ज्यौं तरु कटि गिरि जाइ।
नंद-घरनि यह देखि कै, कान्हहिं टेरि बुलाइ।
निठुर भए सुत आजु तात की छोह न आवति।
यह कहि-कहि अकुलाइ, बहुरि जल भीतर धावति।
परति धाइ जमुना-सलिल, गहि आनतिं ब्रजनारि।
नैकु रहौ सब मरहिंगी, की है जीवनहारि।
स्याम गए जल बूड़ि वृथा धिक जीवन जग कौ।
सिर फोरतिं, गिरि जातिं अभूषन तोरतिं अँग कौ।
मुरछि परी, तन-सुधि गई, प्रान रहे कहुँ जाइ।
हलधर आए धाइ कै, जननि गई मुरझाइ।
नाक मूँदि जल सीचि जबहिं जननि कहि टेरयौ।
बार-बार झकझोरि, नैकु हलधर-तन हेरयौ।
कहति उठो बलराम सौं कितहिं तज्यौ लघु भ्रात।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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