नागर रसिकऽरु रसिक नागरी -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग मालकौशिक




नागर रसिकऽरु रसिक नागरी।
बलि बलि जाउँ देखि अब दपति प्रमुदित लीला प्रथम फाग री।।
राधा दधि मंथान आपनै गेह करति धरि सुकर पाग री।
तब हरि उठि आए औचानक उमसि, सीस सचि ढरति गागरी।।
लै उसास अजुरि भरि लीन्हौ बिदुरित दधि जु अनूप आँगरी।
अति उमँगति स्याम घन छिरके मनु बिछुरी बगपाँति माँग री।।
मोहन मुसकि गही दोरत मैं छुटी तनी छंद रहित घांगरी।
जनु दामिनि बादर तै बिमुख बपु तरषित तच्छन लई तलाग री।।
परमानंदित दंपति ऐसै पट तै परसत परत दाग री।
'सूरदास' प्रभु रसिक सिरोमनि का बरनौ ब्रजजुवति भाग री।। 120 ।।

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