नागरि रही मुकुर निहारि।
आनि औचक नैन मूँदे, कमलकर गिरिधारि।।
चौकि चकित भई मन मैं, स्याम कौ जिय जानि।
मैं डरति ही अबहिं जाकौ, मिले ताकौ आनि।।
तबहिं तन की सुरति आई, लख्यौ तन प्रतिछाँहि।
सकुच मनही मन दुरावति, परसपर मुसुकाहिं।।
समुझि मन मैं कहति सखियनि, विपुल लै लै नाम।
'सूर' प्रभु उर सीस परसे, बीच बेनी स्याम।।2202।।