नागरि गागरि जल भरि ल्यावै।
सखियनि बीच भरयौ घट सिर पर, तापर नैन चलावै।।
डुलत ग्रीव, लटकति नक-बेसरि, मंद-मंद गति आवै।
भृकुटी धनुष, कटाच्छ बान, मनु पुनि-पुनि हरिहिं लगावै।।
जाकौं निरखि अनंग अनंगित, ताहि अनंग बढ़ावै।
सूर स्याम प्यारी-छबि निरखत, आपुहिं धन्य कहावै।।1338।।