नागरिछबि पर रीझे स्याम।
कबहुँक वारत है पीतांबर, कबहुँक वारत मुक्तादाम।।
कबहुँक वारत है कर मुरली, कबहुँक वारत मोहननाम।
निरखि रूप सुख अंत लहत नहि, तनु मनु वारत पूरनकाम।।
बारंबार सिहात 'सूर' प्रभु, देखि देखि राधा सो वाम।
इनकौ पलक ओट नहिं करिहौ, मन यह कहत वासरहु जाम।।2135।।