नहीं खींच पाता फिर उसको भुक्ति-मुक्तिका कोई राग।
प्रेम-सुधा-रस-मा दौड़ पड़ता, वह सहज सभी कुछ त्याग॥
प्रियतमके प्रिय मधुर-नाम-गुण-लीला-कथा सुधा-रस मग्र।
सर्व समर्पित होता उसका, होता सहज मोह-भ्रम भग्र॥
राधामुख्या भावमयी सब व्रजसुन्दरियाँ कर अभिसार।
पहुँचीं तुरत श्याम-चरणोंमें उन्मादिनि हो मधुर उदार॥
किया समर्पण परम मुदित-मन, सहज अखिल जीवन-आचार।
बनी सर्वथा एकमात्र वे प्रियतम सुख-मूरति साकार॥
सहज अमित सौन्दर्य, परम माधुर्य, अतुल ऐश्वर्यनिधान।
पूर्णकाम निष्काम सहज जो आत्माराम स्वयं भगवान॥
गोपीके उस त्यागशुद्ध रस मधुर दिव्यका करने पान।
लालायित हो उठे परम आतुर हो रसदाता रसखान॥
प्रेमीजन-मन-रजन प्रभुने किया उन्हें सादर स्वीकार।
आत्माराममयी रस-क्रीडा विविध विचित्र रची सुखसार॥