नहिं ऐसा जनम बार बार -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग हमीर





नहिं ऐसा जनम बार बार ।।टेक।।
का जानूँ कछु पुण्य प्रगटे, मानुसा अवतार।
बढत छिन छिन घटत पल पल, जात न लागे बार।
बिरछ के ज्यूँ पात टूटे, बहुरि न लागे डार।
भैसागर अति जोर कहिये, अनँत ऊंडी धार।
राम नाम का बाँध डेरा, उत्तर परले पार।
ज्ञान चोसर मँडी चोहटे, सुरत पासा सार।
या दुनियां में रची बाजी, जीत भावै हार।
साधु संत महं ज्ञानी, चलत करत पुकार।
दासि मीरां गिरधर, जीवणा दिन च्यार ।।195।।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. का... प्रगट = पता नहीं कौन से, पुण्यों के प्रताप से। अवतार = जन्म, योनि। जात = बीतते वा नष्ट होते। वार = विलंब। जोर = प्रबल, जोरदार। अनँत = अंतरहित। ऊँड़ी = गहरी। परले पार = ( संसार सागर के ) उस बोर वा दूसरी ओर। चोसर = चौपड़ की वाजी। मँडी = लगी, बिछी। चैहटै = चैरास्ते पर वा बाजार में। सुरत = परमात्मा की स्मृति। पासा = चौसर के पासे। सार = चैसर के गोटे। भावै = चाहे। ( देखो - ‘चौपड़ी मांडी चौहटै अरध उरध बाजार। कहै कबीरा राम जन, खेलौ सन्त विचार’ - कबीर)। महंत = मठधारी वा मन्दिर के प्रधान पुजारी। जीवण... प्यार = जीवन काल केवल कुछ ही दिनों का है।
    विशेष- प्राय: यही पद 'सूर सागर' ('रत्नाकर' संस्करण पृ. 46) में इस प्रकार आया है:-
    'नहि अस जनम बारंबार।
    पुरवलौ धौं पुन्य प्रगट्यो, लह्यौ नर अवतार।
    घटै पल-पल, बड़ै छिन छिन, जात लागि न वार
    धरनि पत्ता गिरि परे तैं, फिरि न लागै डार।
    भय-उदधि जमलोक दरसै, नियर ही अँधियार।
    सूर हरि कौ भजन करि- करि, उतरि पल्ले पार॥88॥
    'चौसर एक प्रकार का खेल है जो विसात अर्थात एक चौकोर खानेदार कपड़े पर चार रंगों की चार-चार गोटियों और तीन पासों, अर्थात हाथी दाँत वा हड्डी के बने बिंदीदार छ: पहले टुकड़ों से दो मनुष्यों में खेला जाता है।
    'ज्ञान-चोसर-हार' = ज्ञान भोग की साधन, सांसारिक व्यवहारों में रहते हुए भी, परमात्मा की स्मृति के सहारे, करनी पड़ेगी। अतएव जो जितनी साव- धनी वा मुक्ति से साथ निभाना चाहेगा उतनी ही सफलता मिलेगी।

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