नहिंन दुरत नैना रतनारे।
मनहुँ बँधूक कुसुम पर सोभित, सुंदर स्याम सिलीमुख तारे।।
कुटिल अलक रही बिथुरि बदन पर सकुच सहित हरि नरम निहारे।
भौंह सिथिल मनु मदन-धनुष-गुन गरे, कोकनद बान बिसारे।।
मूँदेइ आवत नैन अलस बस, छीन भए उघरत न उघारे।
'सूरदास' प्रभु सु पै कहौ तुम, को भामिनि जहँ रतिरन हारे।।2683।।