नवल निकुंज नवल नवला मिलि, नवल निकेतन, रुचिर बनाए।
विलसत बिपिन बिलास बिबिध बर, बारिज बदन बिकच सचु पाए।।
लागत चंद्रमयूख सु तियतनु, लता-भवन-रंध्रनि मग आए।
मनहुँ मदनबल्ली पर हिमकर, सीचत सुधाधार सत नाए।।
सुनि सुनि सुचित स्रवन जिय सुंदरि, मौन किये मोदति मन लाए।
'सूर' सखी राधामाधव मिलि कीड़त रति रतिपतिहिं लगाए।।1987।।