नवल नंदनंदन रंगभूमि राजैं।
स्याम तन, पीत पट मनौ घन मै तड़ित, मोर के पंख माथै बिराजै।।
स्त्रवन कुंडल झलक मनौ चपला चमक, दृग अरुन कमल दल से बिसाला।
भौह सुंदर धनुष, वान सम सिर तिलक, केस कुंचित सोह भृंग माला।।
हृदय बनमाल नूपुर चरन लाल, चलत गज चाल अति बुधि बिराजै।
हस मानौ मानसर अरुन अबुज सुभर, निरखि आनद करि हरषि गाजै।।
कुबला मारि चानूर मुष्टिक पटकि, वीर दोउ कध गजदत धारे।
जाइ पहुँचे तहाँ कंस बैठयौ जहाँ, गए अवसान प्रभु के निहारे।।
ढाल तलवारि आगै धरी रहि गई, महल कौ पथ खोजत न पावत।
लात कै लगत सिर तै गयौ मुकुट गिरि, केस गहि लै चले हरि खसावत।।
चारि भुजा धारि तेहि चारु दरसन दियौ, चारि आयुध चहूँ हाथ लीन्हे।
असुर तजि प्रान निरवान पद कौ गयौ, बिमल मति भई प्रभु रूप चीन्हे।।
देखि यह पुहुप वर्षा करी सुरनि मिलि, सिद्ध गधर्व जय धुनि सुनाई।
'सूर' प्रभु अगम महिमा न कछु कहि परति, सुरनि की गति तुरत असुर पाई।।3078।।