नवल किसोर नवल नागरिया।
अपनी भुजा स्याम-भुज ऊपर, स्याम-भुजा अपनैं उर धरिया।।
क्रीड़ा करत तमाल-तरुन-तर स्यामा स्याम उमँगि रस भरिया।
यौं लपटाइ रहे उर-उर ज्यौं मरकत मनि कंचन मैं जरिया।
उपमा काहि देउँ, को लायक, मन्मथ कोटि वारने करिया।
सूरदास बलि-बलि जोरि पर, नँद-कुँवर बृषभानु-कुँवरिया।।688।।