नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
16. महर्षि लोमश-शकट-भञ्जन
'क्या?' गोप पूछने लगे। 'इसने छकडे़ को पैर मारकर पलट दिया।' बालक तो दौड़ गया है माता यशोदा के समीप और उनके अंक में दुग्धपान करने नन्दनन्दन के नन्हें दक्षिण चरण पर अंगुली रख रहा है- 'अपने इस पैर से मारकर इसने छकड़ा उलटा है।' 'हाँ, इसी ने उलटा है। हमने देखा है।' कई बालक कहने लगे हैं। मैं जानता हूँ- साक्षी हूँ कि बालक सत्य कह रहे हैं; किंतु गोप, गोपियाँ और ऋषि गण इन बच्चों की बात पर क्यों ध्यान देने लगे। केवल मधुमंगल कहता है- 'मैया! इसी ने उत्पात किया होगा। यह अभी से बहुत नटखट है।' 'केवल आप बहुत सीधे हैं!' मधुमंगल की तो गोपियाँ ही हँसी उड़ाने लगी हैं। गोपों ने छकड़े को सीधा कर दिया है। उसके कूबर, चक्के आदि यथास्थान व्यवस्थित कर दिये हैं। अब मैं मुनि-मण्डली में प्रकट मिलकर शकट-पूजन करा सकता हूँ। स्वस्ति-पाठ करके मैं मथुरा के ऊपर से ही अपने आश्रम आया हूँ। कंस पुकार रहा था- 'उत्कच! उत्कच!' अज्ञ कंस समझता था कि उत्कच आवेगा उसे सफलता का संवाद देने। गोकुल जाकर कोई असुर लौटने वाला है इस समय! मुझे आज शान्ति मिली। उत्कच को दिया मेरा शाप भी नन्दनन्दन ने वरदान बना दिया! |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज