नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
12. बुआ नन्दिनी-षष्ठी महोत्सव
संकल्प, स्वस्ति पाठ, गणेश, मातृका नवग्रह, कलश-पूजन, वसोर्धारापात, षडमुख देव सेनापति और देवी षष्ठी का पूजन- मैं एक-एक सब क्रियाओं को गिना सकती हूँ। भाभी के समीप सहायिका बनकर रहने का सौभाग्य आज मेरा स्वत्व था। महर्षि को मन्त्र-पाठ उनके गद्गद् स्वर के कारण कई बार रोकना पड़ता था। ब्राह्मण सामगान कर रहे थे और मुझे रोहिणी भाभी ने सावधान किया- 'ननदजी! कोई नेग की अधिकारिणी विप्रपत्नी चुपचाप चली न जायें, इतना आप कृपा करके ध्यान में रखना।' भैया और भाभी हाथ जोड़कर सुब्रह्मण्य तथा षष्ठी देवी का स्तवन करने लगे, तभी मैं इस नवीन कर्त्तव्य की ओर लग गयी। राहु-वेध कौन करेगा? कहते हैं कि यह कार्य जो करता है, उसे कुछ प्रायश्चित करना पड़ता है। यह अच्छा कार्य नहीं है करने वाले के लिए; किंतु नवजात के मंगल के लिए इसे होना चाहिए। भला यह भी सुनने की बात है भाभी की कि वे इसे करने के पक्ष में नहीं हैं। भैया तो भोले हैं और रोहिणी भाभी ने पता नहीं कैसे इसे टाल देना मान लिया। मैंने तो कल ही अपने उनसे पूछा तो वे उत्साह से उमड़ कर बोले- 'तुम यह अवसर मुझे दिला सको तो मैं अपना धन्य भाग मानूँ। तुम दोष की बात कहती हो, इस नवजात के मंगल के लिए मस्तक दिया जा सके तो वह भी महापुण्य होगा; किन्तु देख लेना, मुझे कोई धनुष छूने भी नहीं देगा।' मैं उनसे कह चुकी थी कि चुपके से द्वार के समीप आ जाना, मैं पोटली बाँधूँगी राहु-वेध की और तुम्हें भैया का धनुष और बाण पकड़ा दूँगी। अपना लेकर आओगे तो चर्चा चल पड़ेगी और तब तुम्हें कोई यह कार्य नहीं करने देगा। तुम तो सबके सम्मान्य हो। मेरी यह सूझ भी काम नहीं आयी। छोटे नन्दन भैया धनुष लेकर ही आ गये और मैं उस सूतिकागृह के वैडूर्यमणि द्वार की चौखट में हरिद्रा, पुंगीफल तथा श्वेतसर्षप की पोटली बाँधूँ, इससे पूर्व ही धनुष पर ज्या चढ़ाकर उन्होंने बाण रखा और पुकार की- 'नन्दिनी! राहुवेध की पोटली कहाँ है?' मैं क्या करती, यह छोटे भैया का स्वत्व था। यह बात भी है कि गोकुल में उन-सा धनुर्धर दूसरा नहीं है। जो राहु-वेध करेगा, व्रजयुवराज बड़ा होगा तो उसके करों में धनुष देने का अधिकार भी उसी का होगा। |
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