नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
89. श्रीराधा
हम सब जैसे मैया व्रजेश्वरी के साथ किसी सूर्य-ग्रहण के समय समन्तक पञ्चक तीर्थ में स्नान करने कुरुक्षेत्र चली गयीं। वहाँ अग्रज के साथ वे द्वारिकाधीश मिले। उनकी रानियाँ मिलीं, पुत्र तथा पुत्रवधुयें मिलीं। कितनी ही बातें हुईं। मुझे तो अब भी वह स्वप्न समूचा स्मरण है। ऐसा लगता है जैसे वह सत्य ही हो। स्वप्न ही तो था। मेरे व्रजराजकुमार नित्य किशोर और मेरे बहुत-बहुत अनुरोध करने पर तो किसी सखी के कर का ताम्बूल, पुष्पमाल्य स्वीकार करते हैं। किसी की सेवा लेने में कितना संकोच करते हैं, उनके इतनी रानियाँ, पुत्र, पुत्रवधुयें? यह सत्य भी हो तो वे द्वारिकाधीश इनके समान स्वरूप वाले इनके कोई अंश होंगे। उनसे मिलने से व्रज से बाहर राधा की कोई छाया ही गयी होगी, मैं तो जा नहीं सकती। अवश्य छाया गयी होगी। तभी तो उसके सब अनुभव मुझमें प्रतिफलित होने लगे हैं। अब भी सोचती हूँ तो वे द्वारिकाधीश, उनका वह समाज, वह मिलन बहुत उदास-उदास लगता है। व्रज के- वृन्दावन के वनमाली के मिलन की छाया भी तो उसमें कहीं नहीं ज्ञात होती। ऐसा ही स्वप्न- बहुत दीर्घ प्रतीत होने वाला स्वप्न कि दूसरे किसी सूर्य-ग्रहण में हम सबको बाबा व्रजेश्वर सुदूर सिद्धाश्रम-कश्यपाश्रम ले गये स्नान कराने। वहाँ भी वे द्वारिकाधीश समाज के साथ आ गये। बाबा ने हम सबको उनके साथ विदा कर दिया और द्वारिका के पार्श्व में महानगर बनवाकर द्वारिकाधीश ने मुझे सखियों के साथ बसा दिया। छिः! पता नहीं, मेरी वह कैसी छाया थी, वहाँ उन द्वारिका के स्वामी की प्रधान प्रिया बन गयी। स्वप्न के समय का क्या ठिकाना- बहुत समय बनी रही। बहुत स्नेह-बहुत सम्मान करते थे श्रीद्वारिकाधीश; किंतु व्रज के आनन्द का सहस्रांश भी तो इस स्वप्न में सुलभ नहीं होता। ऐसे नीरस स्वप्न क्यों आते हैं? कोई छाया चली भी गयी हो तो उसका प्रतिफलन मुझे इतना उन्मत्त क्यों बनाता है? मेरे नवघनसुन्दर तो कहीं जाते नहीं। उनकी भी कोई छाया कहीं सक्रिय हो तो मुझसे क्या प्रयोजन? मैं प्रारम्भ से ऐसी ही पगली हूँ। वे बाबा के साथ गोकुल से वृन्दावन आये, उन्हें देखा- तब से ही उन्मादिनी हो गयी। वे समीप होते थे, निकुञ्ज में उनके अंक में होने पर भी मैं व्याकुल होकर क्रन्दन करने लगती थी- 'हा प्राण-वल्लभ! क्या गये तुम? मुझे छोड़कर कहाँ चले गये?' मूर्च्छित तक हो जाती थी वियोग की मानसिक कल्पना करके। अब वही उन्माद बढ़ गया है। |
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