नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
67. पाटली नानी-शंका-सगाई
'आप कहना क्या चाहते हैं? हमारे नीलमणि का यह अपराध है कि नारायण असुरों से उसकी रक्षा करते रहे और उसने हम सबको वर्षा में बह-डूबकर मर नहीं जाने दिया, बचा लिया?' नन्दन की वाणी का व्यंग मुझे तो अमृत जैसे लगा। 'नहीं भैया!' पञ्च उठकर हाथ जोड़कर बोला- 'तुम क्रोध मत करो! केवल तुम्हारा ही नीलमणि पर अनुराग नहीं है। हम सबकी उस पर दुस्त्यज प्रीति है। इसीलिए लगता है कि वह गोप बालक नहीं है।' 'वह मानव नहीं है, दैत्य है? राक्षस है? दानव है?' नन्दन ने गर्जना की- 'क्या तात्पर्य है आप सबका?' किसके मुख में दो हाथ की जिह्वा है जो यह सब कहेगा।' पञ्च ने फिर हाथ जोड़ा- 'वह जन्म से ही राक्षस, दैत्य, दानव तो मारता आ रहा है। यह तो संसार जान चुका है कि वह असुर-शत्रु है।' 'तब देवता है?' नन्दन ने इस बार हँसकर पूँछा- 'देवताओं के राजा इन्द्र की पूजा तो रोक दी उसने और ऐसी पराजय दी कि इन्द्र जीवनभर नहीं भूलेगा। भला कौन-सा देवता होगा हमारा नीलमणि? उसका बड़ा भाई भी है और वह राम अपने अनुज से बल में भी बड़ा है। अब वह भी कोई बड़ा देवता होगा?' 'राम राजकुमार है। क्षत्रिय ग्रहों में भगवान नारायण अवतार लेते ही रहे हैं।' पञ्च गम्भीर बना रहा- 'हम ठीक ग्रामीण भी नहीं, वन-वन भटकने वाले गोप हैं। हम पशुजीवी वैश्यों में यह कृष्णचन्द्र कैसे आ गया?' 'आप सब मेरी प्रार्थना सुन लें!' अब नन्द ने हाथ जोड़कर खड़े-खड़े कहा- 'इस बालक को उद्देश्य करके महर्षि गर्गाचार्य ने जो कहा था, आप सब भी सुन लें!' 'भगवान शंकर के साक्षात शिष्य गर्गाचार्यजी ने कहा था?' पञ्च बैठ गया था। कई बूढ़ों ने एक साथ पूछा। मैं भी उत्सुक हो उठी। मेरी पुत्री ने भी इसकी कोई चर्चा मुझसे नहीं की थी। मेरे दौहित्र के सम्बन्ध में उन संसार के सबसे बड़े भविष्यज्ञ सर्वज्ञ ने क्या कहा होगा? गोपों ने पूछा- 'मथुरा में उनके आश्रम गये थे आप?' 'लोक में कहा जाता है कि बात चार कान से बाहर जाकर फूट जाती है।' नन्द ने इधर-उधर देखा। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज