नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
65. महर्षि पुलस्त्य-गोवर्धन-धारण
गोपों ने इन्द्र की अवज्ञा की-अवज्ञा तो थी; क्योंकि इन्द्रध्वज व्रजराज ने आरोपित किया, उपलिप्त किया, आवाहन किया इन्द्र का और प्राथमिक पूजन तक कर दिया; किंतु फिर किसी ने बेचारे सुरराज को पूछा तक नहीं। उसका सादर विसर्जन नहीं किया गया। कर्मेन्द्रिय हाथ और उसका अधिदेवता इन्द्र। अब देवराज तो तुम उनके लिये हो जो कर्माश्रित हैं, करते हैं और भोगते हैं। जो सर्वेश्वर के स्वजन हैं, उनसे भी सम्मान पाने की लिप्सा कर्म के देवता का अन्धापन-अज्ञता ही तो है। व्रज में बुलाये गये, थोड़ी पूजा मिली-सन्तोष कर लेते; किंतु इन्द्र को क्रोधोन्माद हो गया। वह स्वयं नहीं समझता था कि वह जो कर रहा है, उसको सर्वेश न सम्हालें तो कितना अनर्थ होगा। इन्द्र तो पूरे कर्मलोक को ही नष्ट करने पर उतर आया था, यह उसे दीखता नहीं था। पूरा कर्मलोक- भारत भूमि नष्ट हो जाती तो यज्ञ करते मेरे वंशज असुर? देवता और उनका यह उन्मादी नायक आहुति पाये बिना भूखे मर जाते इन्द्र के अपने कर्म से। क्रोध में आकर इन्द्र ने प्रलयकालीन मेघों को उन्मुक्त बन्धन करके आज्ञा दे दी- 'पूरे ब्रज को बहा दो! गोपों के समस्त पशुओं को नष्ट कर दो! मैं स्वयं ऐरावत पर आरूढ़ होकर आ रहा हूँ। एक मरणधर्मा बालक कृष्ण के कहने से इन सबों ने मेरा अपमान किया है! मैं इन गोपों को देख लूँगा!' मन में तो आया कि जाकर कह दूँ- 'देवेन्द्र आप धन्य हैं। असंख्य गोवध का संकल्प आपको शोभा देता है। देखिये सावधान रहिये। यह ऐरावत आपका नहीं है। यह क्षीरोदधि से निकला है। इसके स्वामी का संकेत मिले इसे, तो यह आपको सूँड़ से उठाकर अपने पैरों के पीचे कुचल डालेगा! वज्र पर भी भरोसा मत करना! उसमें भी उन्हीं का तेज है।' लेकिन मैंने सोचा कि श्रीकृष्ण को ही इस उन्मद को समझाने दो। मैंने दर्शक रहकर दूर से ही देखना प्रारम्भ किया। गोप-गोपियाँ अपने बालकों तथा पशुओं के साथ घरों में पहुँचे ही थे कि दिन के तृतीय प्रहरान्त में प्रलयकारी वर्षा प्रारम्भ हो गयी। प्रचण्ड पवन, पल-पल पर पविपात और अनवरत ओलों का उत्पात। पहिले ही वज्रपात में वह आरोपित इन्द्रध्वज भस्म हो गया। केवल इतना पौरुष इन्द्र व्रज में प्रकट कर सका। इसके अनन्तर तो एक तृण तक उस दिव्यधरा का नहीं टूटा। भगवती योगमाया ने उपलवृष्टि शिलाओं पर और वज्रपात कालिन्दी जल में केन्द्रित कर दिया; किंतु सहस्राक्ष तो क्रोधान्ध था, इसे देख कहाँ पाता था। |
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