नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
48. ब्रह्मर्षि वशिष्ठ-वत्सोद्धार
'दादा, कितना सुन्दर बछड़ा है यह!' श्याम ने देखते ही पहिचान लिया- 'इसने इतनी शीघ्र कण्ठ की पुष्पमाला कहीं उलझाकर तोड़ दी?' 'तू इसे पहिचानता है?' श्रीसंकर्षण ने साभिप्राय देखा अनुज की ओर। 'इसके उद्धार का जिन्होंने दायित्व दिया है, उनके पावन पदों को पहिचानना अधिक आवश्यक है!' कन्हाई ने अग्रज के कर्ण से मुख सटाकर कहा और मुस्कराया। नन्दनन्दन दबे पैर धीरे-धीरे चला उस बछड़े की ओर। ऐसे चला जैसे बहुत सुन्दर, बहुत अच्छा लगा यह बछड़ा उसे और पुचकारने ही जा रहा हो। 'यह नया बछड़ा कहाँ से हमारे बछड़ों में आ मिला?' सभी गोप-बालक चकित देखने लगे उसी ओर। यह नन्दनन्दन व्रज का था, न वृहत्सानुपुर का। इतने लाल-लाल नेत्रों का बछड़ा कभी देखा नहीं था बालकों ने। कितने ही ऐसे ही काले, हृष्ट-पुष्ट बछडे़ थे उनके यूथ में; किंतु ऐसा तो कोई नहीं था कि कन्हाई को अपनी ओर आते देखकर भी उदासीन बना रहे। घास चरने में लगा रहे। कूदकर श्याम को सूँघने समीप न पहुँच जाय। कृष्णचन्द्र समीप पहुँचे। बछड़ा तनिक गर्दन टेढ़ी करके यही देख रहा था। उसने अपना पिछला एक पैर चलाकर प्रहार किया; किंतु पूँछ के साथ वह पैर गोपाल ने पकड़ लिया। दूसरा पैर चलाया उसने तो दूसरे हाथ से पकड़ लिया और फिर उसे मस्तक के चारों और घुमाते स्वयं घूमने लगे। 'कनूँ, यह दैत्य है!' बालक चीत्कार कर उठे। नन्दिनी का शाप श्रीकृष्ण के स्पर्श के साथ समाप्त हो गया। अब वहाँ बछड़ा नहीं था। काला, भयंकर रक्तनेत्र, रक्तकेश, भयंकर दाढ़ों वाला दैत्य था, जिसके पैर पकड़कर कन्हाई स्वयं तीव्र गति से घूम रहा था। दैत्य के लिए हाथ भी समेटना सम्भव नहीं हो रहा था। गोप-बालक भौचक्के रहे गये थे। उनका सुकुमार कन्हाई इतने बड़े दैत्य को कब तक घुमावेगा? लेकिन दो क्षण लगे और श्याम ने फेंक दिया पूरे बल से दैत्य देह एक भारी कपित्थ-वृक्ष के ऊपर। कपित्थ का वृक्ष टूटकर गिर पड़ा। दैत्य का शरीर फटकर चिथडे़ हो गया और आपका कृपापात्र तो पुन: बछड़ा बनकर गोलोक में सुरभि के समीप पहुँच गया था। गोपकुमार दोड़कर अपने सखा को अंकमाल दे रहे थे। श्रीसंकर्षण भाई का कर अपने करों में लेकर सहलाने लगे थे। मैं सुरों को सुमन-वर्षा तथा स्तुति करने छोड़कर आपको समाचार देने यहाँ चला आया।' देवर्षि का वर्णन सुनकर मैं क्या कहता। मेरे वचनों का सम्मान मेरे रामभद्र ने इस अवतार में भी इतना रखा- मंगल हो नन्दनन्दन का। |
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