नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
45. लक्ष्मी-गोदोहन
कन्हाई ने अपनी छोटी-छोटी दोहनी धर दी और हेमा के पैरों के पास बैठ गया। मुख उठाकर हेमा के नन्हे स्तनों में अधर लगा दिये इसने। मैं क्षीराब्धिसुता स्पष्ट देख सकती हूँ। गायों के स्तनों में स्वयं मेरे पिता क्षीरसागर के अधिदेवता ने आवास पाया है। हेमा के स्तन में ये अखिलेश्वर मुख लगाये हैं तो क्या वहाँ क्षीरसिन्धु अपने को व्यक्त करने में प्रमाद कर लेते? व्रजराज चकित देख रहे हैं कि उनकी सुनहली बछड़ी ने पैर फैलाये, कुक्षि नीची की, मूत्र-त्याग किया और उसका आयन बढ़ा-फूलता चला गया। उसके स्तन मोट-मोटे हो गये। तीनों स्तनों से दूध की धार गिरने लगी है। एक तो श्याम के मुख में है। 'तेरा दूध तो गिर रहा है!' भद्र चेतावनी देता है। नीलसुन्दर स्तन से मुख हटाकर अपनी कलशी में दूध लेने लगते हैं। 'भद्र तो बिना पूजा किये गाय दुहता है।' अब व्रजराज उठकर समीप आ गये। अपने पुत्र को अंक में उठा लिया- 'मैं आज ही महर्षि शाण्डिल्य से पूछूँगा। मेरा लाल अच्छे मुहूर्त में गो-पूजन करके नन्दिनी को दुहेगा।' मुहूर्त सदा श्याम-सुन्दर का साथ देते हैं। सभी बालकों ने- बरसाने के बालकों ने नन्द-गोष्ठ में ही गोदोहन का मुहूर्त करना निश्चित किया है। महर्षि एक साथ एक ही स्थान पर तो पूजन करा सकते हैं। बालकों ने सांयकाल ही अपनी-अपनी मणिजटित स्वर्ण-दोहनियाँ चुन ली हैं। रात्रि में सोते समय उसे समीप ही रखकर सोये। कर्मारम्भ-मात्र में गणपति, गौरी, नवग्रह, योगिनी का पूजन तो अनिवार्य है ही। गोपों ने रात्रि में ही गोष्ठ सज्जित कर दिया था। भरपूर सजा दिया था। सबकी दूध देने वाली गायें व्रजराज के गोष्ठ में अलंकृत होकर आ गयी थीं। आज राम-श्याम को, सभी शिशुओं को माताओं ने अलंकृत किया है। तैलस्निग्ध अलकों में लगे मयूर-पिच्छ, मल्लिका-सुमन और आज सबने कछनी बाँधी हैं- रंग-बिरंगी कछनियाँ। गायों का पूजन, बछड़ों का पूजन, दोहनी-पूजन, रज्जु–पूजन- व्रज में यह निर्योग-पाश[1] केवल पूजन तथा स्कन्ध पर रखने की सामग्री है। किसी गौ को दुहते समय पाद-बन्धन की आवश्यकता नहीं होती। कोई बछड़ा बाँधा नहीं जाता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नोवने की रज्जु
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज