नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
42. ऋषभ-नये सखा
यह मधुमंगल कैसे पवित्र करेगा? माँ तो कहती है कि गायों के खुर, पूँछ पवित्र होते हैं। बछड़ों के भी खुर पवित्र होते हैं। वे जहाँ पड़ते हैं, वहाँ धरती पवित्र होती है। पवित्र कैसे होती है? क्या होता है पवित्र-पता नहीं, परंतु मधुमंगल तो गाय या बछड़ा नहीं है। मधुमंगल ने तो बाबा से कहा- 'मैं तो ब्राह्मण हूँ। ऐसे कैसे आऊँगा आपके यहाँ। मेरे सखा की आप सगाई कर दो अपनी कन्या से तो मैं उसके विवाह में साथ आऊँगा। बहुत-सी दक्षिणा लूँगा।' ऐसी बात भी कोई कहता है! श्याम तो भाग गया मैया के समीप लज्जित होकर; किंतु सब बड़े गोप हँसने लगे थे। वृषभानु बाबा मधुमंगल पर बिगड़े नहीं। वे तो कहने लगे- 'आप ब्राह्मण हैं, अत: आप ही यह काम करा दें! मैं आपको इसमें भी बहुत-सी दक्षिणा दूँगा।' मधुमंगल ब्राह्मण है, इसी से कोई इसे डाँटता नहीं। यह तो हँसता-हँसता बोला- 'मैं आपका पुरोहित नहीं बनूँगा। आप अपने पुरोहित से प्रार्थना करो। मैं अपने सखा के साथ वहाँ आऊँगा।' मधुमंगल वृषभानु बाबा का पुरोहित बन जाता तो इसका क्या बिगड़ा जाता था। श्रीदाम या सुबल के साथ चला जाता वहाँ। अपने कन्हाई की सगाई होती तो आनन्द कितना आता! लेकिन मैं मधुमंगल से कुछ कह नहीं सकता। वह मुझसे बड़ा है और मुनियों के साथ भी मन्त्र पढ़ने लग जाता है। ब्राह्मणों की बात वह ठीक ही जानता होगा। सुबल भागा-भागा आया था श्याम के समीप। मैं भी उसके साथ आया यह देखने कि यह क्या कहता है कन्हाई से। मुझे लगा कि मधुमंगल की बात से यह रूठ न गया हो। पहिले ही दिन तो इतने अच्छे सखा यहाँ आकर मिले, ये रूठ जायँ, यह अच्छी बात तो नहीं है। सुबल रूठता तो मैं उसे बतलाने आया था कि उसके बाबा को क्रोध नहीं आया है। उनकी बात मुधमंगल ने मान ली होती तो हम सब कल ही कन्हाई की सगाई उससे करा लेते। 'तू मेरी बहिन से सगाई करा ले!' सुबल तो कन्हाई के कान के पास मुख लगाकर बोल रहा था- 'वह मेरे जैसी ही है। बहुत भोली है। किसी से भी लड़ना नहीं जानती। मेरी सब बातें झट-से मान लेती है। तेरी भी बात मान लिया करेगी।' |
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