नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
42. ऋषभ-नये सखा
बरसाने से आये सब बालक मुझे तो बहुत अच्छे लगे। हम सबको इतने नये सखा मिल गये। अब हम सब साथ खलेंगे। श्रीदाम कह गया है कि वह प्रतिदिन प्रात: अपने सब साथियों को लेकर सम्मुख पुलिन पर पहुँच जाया करेगा। हमारे कन्हाई के साथ खेलना किसे अच्छा नहीं लगेगा। सुबल तो इससे इतना घुलमिल गया आज ही जैसे इसका सगा भाई ही हो। श्रीदाम भी आया तब से श्याम के साथ ही तो लगा रहा। हमारा कनूँ है ही ऐसा कि अपने सब खिलौने सबको बाँटता रहता है। मैया से माँग-माँगकर सब खिलौने उठा लाया; किंतु सुबल कहता था कि उसकी मैया ने मना किया है- 'वहाँ से कुछ मत लाना!' क्यों मना किया होगा? मेरी माँ तो मुझे कभी मना नहीं करती। मैं मैया के दिये, कनूँ के दिये खिलौने, वस्त्र, चाहे जो घर उठा लाता हूँ। कनूँ को भी माँ देती हैं तो वह उठा ले जाता है। वह तो जाकर मैया को दिखाता है। मैं एक दिन सुबल के साथ उसकी मैया के पास जाऊँगा; किंतु मुझे तो संकोच लगता है कि किसी नई गोपी या गोप के पास जाते। सुबल की मैया को देखने को जी करता है। श्याम को कहूँगा। वह कहीं जाने में संकोच नहीं करता। उसके साथ हम सब बरसाने चलेंगे। वृषभानु बाबा तो बुला गये हैं। वे तो कन्हाई को बहुत बार कह गये- 'लाल! अपने इन मित्रों के साथ वहाँ आ जाया करो। वह भी तुम्हारा ही घर है।' वृषभानु बाबा भी गोप ही तो हैं। हमारा श्याम बहुत बातें जानता है। कहता है- 'सब गोपों के घर अपने ही घर हैं।' गोकुल में कोई गोपी मुझे तो अपने घर में आने पर मना नहीं करती थी। सब तो माखन देकर कहती थीं- 'लाला रे! अपने श्याम को साथ ले आया कर!' गोपियाँ विचित्र हैं। कन्हाई को बुलाती हैं और आता है तो इससे कलह करने लगती हैं। श्रीदाम कहता है कि उसके यहाँ कोई गोपी कलह करना जानती ही नहीं। सब बहुत अच्छी होंगी वहाँ। कन्हाई ऊधमी तो है। वहाँ जाकर कोई ऊधम करेगा तो क्या वे चुप बनी रहेंगी? |
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