नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
'चाचा! तुम छकड़े खड़े क्यों नहीं करते?' मुझे फिर बुलाया इस चपल ने। भाभी कहती हैं- 'अपने इस भ्रातृ-पुत्र को अब तुम्हीं समझाओ। यह अड़ा है- गिरिराज आ गये। अब आगे क्यों जा रहे हो?' 'हम सबको जल भी तो चाहिये!' मैंने हँसकर समझाया- 'गिरिराज के समीप जहाँ यमुनाजी हैं, वहाँ रहेंगे हम लोग।' 'यमुना हैं वहाँ?' कन्हाई तो दाऊ को, दूसरे सखाओं को पुकारने लगा है- 'वहाँ यमुना भी हैं तोक! विशाल, वहाँ गिरिराज भी हैं, यमुना भी हैं!' 'वे दीखती हैं, यमुनाजी!' मैंने हाथ उठाकर संकेत किया। 'वे उजली दूध जैसी।' श्याम माता के अंक में चलते शकट पर सुप्रसन्न खड़ा एकटक देखने लगा है। 'वह तो तट के समीप का पुलिन है।' मैंने हँसकर समझाया- 'पुलिन से सटा सघन वृन्दावन और उज्ज्वल पुलिन के दूसरी ओर वह नीली धारा।' 'वृन्दावन!' आज हमारा कन्हाई बहुत प्रसन्न है। प्रत्येक के नाम सुनकर यह खिलखिल उठता है। पता नहीं क्या समझता है इन नामों से। 'मैं पुलिन पर खेलूँगा!' अब यह सखाओं को पुकारने लगा है। शकटों को कुछ अधिक वेग से चलाने को कहता है। वहाँ हम सबको मध्याह्न से पूर्व पहुँच जाना चाहिये, जिससे सूर्यास्त तक सब व्यवस्था की जा सके। बहुत से वृक्ष जो काँटेदार होंगे या अनुपयुक्त स्थानों में होंगे, काटने पड़ेंगे। सेवक तथा गोप बड़ी शाखाओं को तथा गोपियाँ छोटी डालों को घसीट लेंगी। हमें सबसे पहिले गायों का गोष्ठ सुरक्षित करना है। काटे गये कण्टक-तरुओं से सुदृढ़ बाड़ बनायी जा सकती है। 'चाचा! ये हमारे पक्षी कहाँ रहेंगे?' कन्हाई को कब क्या स्मरण आवेगा, कौन कह सकता है। महावन के पशु तो कालिन्दी के उसी पार बहुत-से रह गये। जो आये हैं वे वन में रह लेंगे; किंतु सब पक्षी तो आवास के बिना नहीं रह सकते- 'हम समीप के वृक्षों पर इनके लिए घट तथा दूसरे कृत्रिम घोंसले टाँग देंगे!' मेरी बात मोहन मान गया है। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज