नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
हमको कालिन्दी-कूल पर ही रात्रि-विश्राम भी करना था। मध्याह्न के समय स्नान-सन्ध्या, भोजन करके महर्षि शाण्डिल्य मुनि-मण्डल के साथ प्रथम चल पड़े। इन परम पूज्य तपस्वियों ने रात्रि-विश्राम वृक्षों के नीचे ही किया। गोपों को भी गायों के समूह के समीप ही रहना था और मुझे अपने तरुण साथियों के साथ तो रात्रि में सतर्क रहना था। हमारे लिए निद्रा लेने का प्रश्न ही नहीं था। शिशुओं को तथा स्त्रियों को शकटों के घेरे में रात्रि-विश्राम के लिए बड़े भैया ने वस्त्र-शिविरों की व्यवस्था कर दी थी। बालकों को यहाँ वन में जाने से रोका नहीं जा सकता था। श्याम अपने सखाओं के साथ मयूरपिच्छ एकत्र करता, गुञ्जा संग्रह करता, पुष्प-गुच्छ, किसलय तोड़ता बहुत देर तक घूमता-दौड़ता रहा। मैं थोड़े साथियों के साथ बालकों की सुरक्षा के लिए उनके साथ रहा; किंतु हम उनकी सहायता ही तो कर सकते थे। हम उनको बलपूर्वक रोकते तो उनका उत्साह भंग होता। सब बहुत देर तक दौड़ते-खेलते रहे। श्याम ढेरों गुंजा, मयूरपिच्छ संग्रह करके मुझे देता रहा। अन्धकार हो जाने पर सब शान्त होकर सोये हैं। मैंने बड़े भैया से कह दिया है कि प्रभात में इन शिशुओं को शीध्र नहीं उठाना है। हम सब स्नान-संध्या यहीं करके प्रस्थान करेंगे। बड़े भैया ने सेवक पहिले ही भेज दिये थे। वृषभानुजी का सम्पूर्ण सहयोग स्वाभाविक ही मिलना है। हम सबको नन्दीश्वर गिरि के पार्श्व में ही रहना है, यह निश्चय तो पहिले ही हो चुका है। वहाँ स्थान समतल करना है, घास छीली जानी है। बड़े भैया उपनन्दजी ब्राह्ममुहूर्त में ही चले गये हैं। उन्होंने हम सबको वहाँ की व्यवस्था समझा दी है। एक योजन मध्य-भाग चौड़ा रखकर दो योजन में अर्धचन्द्राकार छकड़ों को खड़ा करके हम वहाँ अपना प्रारम्भिक आवास बना लेंगे। काँटेदार वृक्ष चारों ओर गाड़कर उसे सुरक्षित कर लेंगे। सुविधानुसार भवन बनते जायँगे। भैया नन्दराय का भवन नन्दीश्वर गिरि पर हम सर्वप्रथम बनायेंगे। 'चाचा! वह ऊँचा-ऊँचा हरा क्या हैं?' कन्हाई को कुतूहल होता है तो वह मुझे समीप बुलाता है- 'अपने छकड़े तो उधर ही जा रहे हैं।' 'वे गिरिराज गोवर्धन हैं!' मैं बतलाने लगा हूँ- 'उनके एक ओर वह नन्दीश्वर गिरि है। हम उसके समीप ही रहेंगे। वह वृहत्सानुपुर का शिखर दूसरी ओर है!' |
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