नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
प्रात: प्रस्थान की प्रस्तुति में गया तो मैं गोकुल के सभी गृहों में; किंतु रानी भाभी ने हँसकर ठीक ही व्यंग किया कि मैं प्राय: रात्रिभर घूम-फिरकर उनके ही प्रांगण में बना रहा। पहिली बार शयन करते नीलमणि को समीप से देखने की सुविधा प्राप्त हुई थी। उस पर दृष्टि जाने पर पद कहाँ कहीं जाने को उठ पाते हैं। राम-श्याम दोनों एक ही शैया पर सटकर से रहे थे। राम निद्रा में भी अनुज पर दक्षिण कर रख जैसे उसे सम्हाले था और कन्हाई तो बड़े भाई से लिपटा ही था। रानी रोहिणी भाभी को तनिक भी अवकाश नहीं था। उन्हें प्रस्थान के समय क्या सामग्री कहाँ किस छकड़े पर रहेगी, यह सब सम्हालना था। व्रजेश्वरी भाभी सदा से सीधी हैं, और जब श्याम उनके अंक में आया है, इस चंचल ने उन्हें और पगली बना दिया है। केवल कन्हाई ही कहाँ है, हम सबके सभी बालक तो इन्हीं को घेरे रहते हैं। सबके अभियोग सुनने हैं इन्हीं को। सबको जो कुछ चाहिये, इन्हीं से लेना है और सबकी सुधि भी इन्हीं को रखनी है। कल कब कन्हाई को क्या चाहिये, इतनी ही बात होती तो कोई कठिनाई नहीं थी; किंतु क्या सर्वज्ञ सृष्टिकर्त्ता भी सोच सकता है कि ये शिशु मार्ग में क्या माँग बैठेंगे? सब चाहे जब अपने छकड़ों से कूदकर भाभी के छकड़े पर उनके अंक में आ बैठेंगे और बालक तो समझ नहीं सकता कि उसकी बात उसी समय क्यों पूरी नहीं की जा सकती। ये खिलौने, ये वस्त्र, यह कलेऊ की विविध सामग्री- व्रजेश्वरी भाभी हैं यह सब सजाने-सम्हालने को, अत: मेरी गृहिणी ही नहीं, सब गोपियाँ निश्चिन्त हो गयीं हैं। मैं जिस किसी के घर में गया, पुरुषों के लिए पर्याप्त भोजन-सामग्री बनायी है सबने। अपने गृहोपस्कर सम्हालकर छकड़ों पर लाद दिये हैं; किंतु सब अपने शिशुओं की ओर से निश्चिन्त हैं। मेरी पत्नी के समान ही सब हँसकर कह देती हैं- 'उसे जीजी सम्हाल लेंगी। वह कहाँ श्याम को छोड़कर मेरे समीप रहने या कलेऊ करने लगा है।' |
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