नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
39. उपनन्द ताऊ-गोकुल-त्याग का प्रस्ताव
छोटे भाई सन्नन्द ने महर्षि शाण्डिल्य से सुना वर्णन बतलाया- 'बर्हिषत् से र्इशान, यदुपुर से दक्षिण, शोणपुर से पश्चिम की भूमि माथुर-मण्डल है। इसके अन्तर्गत साढ़े बीस योजन का भूभाग दिव्यभूमि है। इस दिव्य भूभाग का हृदय है वृन्दावन।' 'भैया! माथुर-मण्डल के सब वनों में वृन्दावन सर्वश्रेष्ठ है।' सन्नद ने कहा- 'वहाँ गोवर्धन गिरि है। कालिन्दी का प्रवाह है तथा उनका प्रशस्त पुलिन है। वृहत्सानुपर के स्वामी वृषभानुजी अपने अभिन्न मित्र हैं। उनके पुर से समीप ही नन्दीश्वर गिरी है। वह अावास के योग्य है। वहाँ हम कंस से दूर हो जायँगे। वृषभानुजी के समीप हमारा बल द्विगुण हो जायगा। वृन्दावन नीवन बन है। सघन, छोटे हरित वृक्ष हैं। वहाँ पर्याप्त जल की सुविधा है और हमारे पशुओं के लिए मृदुल तृणों से वह परिपूर्ण है।' 'कंस के कुटिल प्रयत्नों से इतने निकट मथुरा के रहकर हम कब-तक बचे रहने की आशा कर सकते हैं!' सन्नन्द की सम्मत्ति मुझे उचित लगती थी। उन्होंने कहा- 'हम गोप दुर्बल नहीं हैं; किंतु वह क्रूर सम्मुख संग्राम करने तो कदाचित आवेगा ही नहीं। वह कूट चेष्टा करता रहेगा। उसके पास मायावी राक्षस बहुत हैं। अत: हम सबको यह महावन त्यागकर यहाँ से चले ही जाना चाहिये।' वृन्दावन मेरा अनेक बार का देखा था; किंतु सम्पूर्ण गोकुल को लेकर वहाँ बस जाना हो तो एकबार पुन: उसे देख लेना आवश्यक लगा। मैं प्रभात में ही छकड़े जोड़कर उसमें बैठा और चल पड़ा। लौटकर मैंने जो कुछ सुना-बहुत भयंकर था। मेरा अनुमान सत्य निकला। अधिदेवताओं के त्यागते ही गोकुल में उत्पात आरम्भ हो गये। मैं लौटकर सायंकाल छकड़े से उतरा ही था कि पत्नी ने सुनाया- 'यहाँ गोकुल में सबेरे से कितनी बार देवर ब्रजराज ने आपको बुलाने के लिए सेवक भेजे। उन्होंने सब गोपों-गोपनायकों को बुलवाया है और आपको आते ही भेज देने को कहा है। पता नहीं, गोकुल का क्या होने वाला है! श्रीहरि रक्षा करें।' 'मैं स्वयं जो कुछ सुनकर आया था, वह नन्दराय को सुना देने को उत्सुक था; किंतु यहाँ क्या हो गया? मैंने पत्नी से पूछा। |
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