नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
37. कुबेर-बाल-क्रीड़ा
अभी कछनी कहाँ बाँध पाते हैं श्रीनन्दलाल। कभी बाँध लेने का मन होता है तो उसे लेकर अग्रज के सम्मुख आ खडे़ होते हैं अथवा जो गोपी समीप दीख जाय, उसके पास पहुँचते हैं। मैया के लिए अवश्य कठिनाई बढ़ गयी है। अब प्रात: से सायं अन्धकार होने तक इन चपल शिशुओं को वृक्षों पर चढ़ने-कूदने की क्रीड़ा में ही लगे रहना प्रिय हो गया है। इन्हें कलेऊ करना है, भोजन करना है, कुछ विश्राम भी करना है, यह कहाँ स्मरण आता है। ब्रजराज भोजन के लिए बैठ जाते हैं; किंतु राम-श्याम अंक में न बैठ जायँ तो उनसे ग्रास उठाया ही नहीं जाता और ब्रजेश्वरी स्वयं न जायँ, चाहे जिसे भेज लें, ये दोनों किसी की सुनते ही नहीं। 'दाऊ! राम! तुम्हारे अनुज को भूख लगी है लाल! देखो न, इसका पेट कितना पिचक गया है!' मैया के कहते ही दाऊ छोटे भाई के पेट की ओर देखने लगेंगे और उन्हें मैया की बात सत्य लगेगी- 'यह श्रान्त हो गया। उसके मुख को देखो, कैसा अरुण हो चला है और उस पर स्वेद कण आ गये हैं। अब तुम इसे लेकर आ जाओ! इसे अब भोजन करना चाहिये!' दाऊ जानते हैं कि उनके बिना उनके अनुज अकेले नहीं जायँगे और 'सचमुच यह सुकुमार आज श्रान्त हो गया है। इसे क्षुधा लगी होगी।' तब दाऊ को इसे लेकर मैया के समीप पहुँचना ही चाहिये। मैया ठीक तो कहती है कि कलेऊ किये विलम्ब हो गया। सूर्य बहुत ऊपर आ गया। अब इतने आतप में श्याम को यहाँ नहीं रहना चाहिये। सायंकाल अन्धकार बढ़ने लगता है। मैया को कभी कोई और कभी कोई बहाना करना पड़ता है- 'आज अमुक पर्व है। तुम दोनों को स्नान करके, अलंकृत होकर विप्रों को गोदान करना है। महर्षि शाण्डिल्य पूजा के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा करेंगे।' मैया किसी भी पूजा के लिए महर्षि को बुलवायेगी ही यदि उसके ये नटखट किसी दूसरे कारण को सुनकर भोजन करने नहीं आते। इन्हें देर तक तो धूप में खेलने नहीं दिया जा सकता। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज