नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
36. चाचा सन्नन्द-दामोदर-मुक्ति
नीलमणि कुछ अधिक ही चपल है। वह होता है तो सब बालक भी उसके साथ हो लेते हैं। वह इतना सुकुमार है कि सवेरे उसका आना किसी प्रकार उचित नहीं था। वह हठी उठते ही भाग न आवे, इसीलिए तो ब्रजेश्वरी भाभी को भवन में ही रहने को कल मैंने महर्षि से कहलवाया। श्याम को वही रोके रह सकती हैं। वह आ जाता तो चपलता किये बिना रह नहीं सकता था। उससे कहाँ चुप बैठा जाता है; किंतु वह नहीं आया तो सभी आयोजन नीरस-शून्य-सा लगने लगा। उसको देखे बिना तो महर्षि- जैसे ज्ञानी में उत्साह नहीं आता, हम सबका तो जीवन ही है वह सुन्दर। कुछ उष्णता आ जाय आतप में, भवन में वह कलेऊ कर ले तब उसे जाकर बुला लाने का मैंने निश्चिय किया था; किंतु- 'अरर धम्!' बहुत भारी शब्द हुआ गोकुल में। ब्रजराज के भवन के समीप ही इतना भयानक शब्द! मैं भागते समय लकुट उठाना भी भूल गया। 'क्या हुआ? कौन-सा राक्षस कूदा?' सभी दौड़ पड़े। किसी को भी कुछ और सूझ ही नहीं सकता था। हमारा सर्वस्व-हमारा प्राण-हमारा श्याम वहाँ सदन में था और वहीं इतना भयंकर शब्द हुआ था। मैं अपनी सम्पूर्ण शक्ति से दौड़ पड़ा था! हम सब लगभग साथ ही पहुँच थे। सब गोप, गोपियाँ पुकारने दौड़े थे और पूरा गोकुल दो-चार पल में ब्रजराज-पौरि के सम्मुख पहुँच गया था। बड़ा भारी उत्पात हुआ था! वहाँ ब्रजेन्द्र पौरि के सम्मुख लगाये गये अतिशय विशाल दोनों अर्जुन के वृक्ष गिर गये थे। मूल सहित उखड़ कर गिरे थे वे। एक-एक ओर गिरा था और दूसरा दूसरी ओर! भगवान जनार्दन ने हम सबको जीवन दान दिया! हमारा नीलमणि सकुशल था। वह ऊखल में बँधा दोनों वृक्षों के मध्य में था। अपना नन्हा-सा सिर एक ओर घुमाता था, फिर दूसरी ओर! मुस्करा रहा था वह। उसका प्रसन्न चन्द्रमुख देखकर प्राण प्राप्त हुए। 'तू यहाँ कैसे आ गया?' मेरे बड़े भाई नन्दराय बहुत बुद्धिमान, बहुत सावधान हैं। बालक वृक्षों के गिरने से डर तो गया ही होगा। उसके समीप हँसते हुए पहुँचना ही उनका उचित था। इस चपल को भाभी ब्रजेश्वरी ने ऊखल से बाँध दिया था। ब्रजपति भैया दूर से ही हँसते न बढ़ते तो श्याम कितना डर गया होता! 'मैया ने बाँधा था। इतने बड़े वृक्ष गिर पड़े तो बाबा मारेगा' यह कहीं बालक को लगता तो वह बहुत कातर हो जाता। |
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