नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
35. यमलार्जुन
सीधे ऊखल घसीटते हमारे समीप आ गये। हम दोनों के मध्य से निकल गये दूसरी ओर, और ऊखल को हमारे तनों में अटका लिया। सखाओं से कहा- 'तुम सब दूर बहुत दूर भाग जाओ!' एक तीव्र झटका- कुछ अद्भुत मूर्छा-सी आयी और दोनों अर्जुन वृक्ष मूल सहित उखड़कर भूमि पर गिर पड़े। छूट गया ब्रजवास! छूट गयी इनकी सन्निधि! यह यक्ष देह पुन: क्या मिला- इसका आदेश मिल गया-'यहाँ से शीघ्र अलका चले जाओ!' स्तुति, प्रणाम, करके चले ही आना पड़ा। सर्वेश्वरेश्वर की आज्ञा टाली तो नहीं जा सकती। अपनी भक्ति का वरदान अवश्य उन्होंने दे दिया है-यह आश्वासन रहा अब! |
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