नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
35. यमलार्जुन
'ये इतने उन्मत्त हैं कि इन्हें अपने नग्न होने तक का भान नहीं!' दयामय देवर्षि को कभी क्रोध नहीं आता! वे करुणा-वरुणालय कमलाकान्त के मन की साक्षात मूर्ति-उनका शरीर ही कृपाधन है। उन्होंने अपनी वीणा पर कोई संगीत प्रारम्भ कर दिया। क्या गाया उन्होंने, हम दोनों उसे स्मरण रखें, इस स्थिति में नहीं थे, पर कुछ ऐसा ही- 'धनमद, पदमद, देहबल-मद तीनों ने मिलकर इन्हें संज्ञा-शून्य कर दिया है। देवी लक्ष्मी अकेली आती हैं तो दृष्टि, श्रोत, वाणी सब विकृत कर देती हैं। परमात्मा का वरदान है दरिद्रता। दरिद्र भोग-विवर्जित सहज तापस है। यदि कथंचित संतोष आ जाय उसमें, उसका उद्धार सरल है।' 'तुम दोनों सुरसरि में, जहाँ समस्त ऋषि-मुनि श्रृद्धा समन्वित स्नान करते हैं, सुरापान करके स्त्रियों के साथ यह कलुषित क्रीड़ा का साहस करते हो?' अपना संगीत समाप्त करके उन दयामय ने कहा- 'तुम ऐसे उन्मत्त हो कि अपनी नग्नता का भी तुम्हें स्मरण नहीं। अत: अन्त:संज्ञा रखने वाले तुम स्थावर वृक्ष बनकर गोकुल में ब्रजराज के द्वार पर रहो। वहाँ भी तुम्हें मेरी कृपा से स्मृति बनी रहेगी।' उस समय तो बड़ा भय लगा। देवर्षि ने यह भी अवकाश नहीं दिया कि हम उनके पदों में प्रणत होेकर प्रार्थना करते। 'गोकुल में श्रीकृष्ण का अवतार होगा तब देवताओं के सौ वर्ष पश्चात् उनके स्पर्श से तुम्हारा उद्धार होगा!' यह कहकर वे आकाश में ऊपर उठ गये। अब हम समझते हैं कि अपराधी, उन्मत्त, अनाधिकारी को भी ऐसा आर्शीवाद देवर्षि ही दे सकते थे। अवश्य इसमें शापांश भी था- वरदान का वह उत्तरांश, जिसके कारण हमें वृक्षता से वञ्चित होकर पुन: यक्ष देह प्राप्त हो गया! देवर्षि की वाणी का पहिला अंश- हमें वृक्ष होकर गोकुल में रहने की बात यदि शाप हो- हम अज्ञानियों ने उस समय उसे ही शाप माना; किंतु उससे बड़ा वरदान तो भगवती वीणापाणि भी सोच नहीं सकती। महर्षिगण, मुनीन्द्र, सुरेशादि भी ब्रज में कहीं कोई तृण-गुल्म होने की कामना करते हैं और हो नहीं पाते। गोकुल के गोपों-गोपियों, गायों की पद-रज प्राप्त होना कितना दुर्लभ है, यह अब हम जानते हैं और देवर्षि ने तो हमें उसमें सदा-स्नान का अवसर दे दिया। हम गोकुल में ब्रजराज के गोष्ठ-द्वार पर, उनकी पौरिपर वृक्ष बनें- यह वरदान मिला हम अपराधियों को उन परम पूज्य को प्रणाम भी न करके अवमानना करने पर। |
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- ↑ किन्ही ग्रन्थों के अनुसार देवर्षि देवल इनको शाप देने वाले हैं।
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