नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
32. मधुमंगल-माखन चोरी
गोकुल में कोई अपने द्वार बन्द नहीं करता। क्यों करें? बिल्लियाँ, श्वान, कपि, काक कोई यहाँ इतना धृष्ट नहीं कि किसी के पात्र में मुख डाल दे। मुख भी डाले तब जब क्षुधातुर हो। मनुष्यों के समान पशु-पक्षियों को परिग्रह का व्यसन तो है नहीं। ये सब तो मेरे समान हैं, पेट भर गया और बस! यहाँ मेरा सखा इन सबको पुचकारकर, बुलाकर माखन खिलाता रहता है। ये सब उसके सथ आवें तो किसी-के घर में आ जाएँ, अन्यथा क्यों किसी-के द्वार की ओर देखें? तोक को कपियों, श्वानों बिल्लियों से बहुत प्रेम है। वह कहता है- 'कनूँ! हम सब तो अँधेरे में खा लेंगे; किंतु बिचारे कपि और काक तो अभी आये नहीं। वे भूखे रहेंगे?' 'भूखे क्यों रहेंगे?' कन्हाई को युक्ति सोचते कितनी देर- 'हम तेरे आँगन में और ऊपर वहाँ छत पर उनके लिए पर्याप्त माखन, दधि डाल जायँगे।' 'तू यहाँ नहीं रहेगा तो उनमें-से कोई यहाँ नहीं खायेगा!' तोक सोचने लगा है। सचमुच सब कन्हाई के साथ ही लगे रहते हैं। यह यहाँ से चला जाय तो कोई काक तक इस घर पर बैठने कदाचित ही आवे। 'बाहर प्रकाश होने लगा है। वे अभी हमें ढूँढ़ते आ जायँगे।' श्याम की यह बात सच है। कपि, श्वान, बिल्लियाँ, पक्षी इसे न देखे तो ढूँढ़ते फिरते हैं गोकुल के घरों में। मुख से फूँककर प्रदीप बुझा दिया इसने। जब यह प्रकाश-स्वरूप स्वयं आ गया तो कृत्रिम प्रकाश- नन्हा-सा टिमटिमाता प्रदीप किस काम का? अतुला चाची ने नवनीत कहीं कक्ष के अन्धकार-पूर्ण कोने में छिपा दिया है; किंतु उसे तो उनका यह तोक ही ढूँढ़ निकालेगा। इसके कण्ठ की रत्नमाला क्या कम प्रकाश देती है? कन्हाई को तो इन आभूषणों के प्रकाश की भी अपेक्षा नहीं। इसकी अंग कान्ति के सम्मुख पूर्ण चन्द्र-ज्योत्स्ना भी म्लान होती है। |
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