नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
4. महर्षि शाण्डिल्य-कुल परिचय
ब्रजपति पर्जन्य ने मेरी अनुमति पाकर पूरे ब्रज के गोपों को एकत्र किया। ब्रजराज का पद कोई राज्य का उत्तराधिकार तो है नहीं कि वह बड़े पुत्र को ही दिया जाय, अथवा उसे लेकर कोई विवाद हो। जो भी गोपों में सर्वप्रिय हो, जिसे सब पसन्द करें, वह ब्रजराज। पर्जन्य के ज्येष्ठ पुत्र उपनन्द सब प्रकार योग्य थे; किंतु प्रबन्ध का दायित्व वहन करने के प्रति उनकी अरुचि थी। वे केवल उत्तम सम्मति दे सकते थे, उसे सक्रिय करने में उन्हें उतना उत्साह नहीं था। द्वितीय पुत्र महानन्द[1] अत्यन्त उदासीन स्वभाव के थे। उन्हें पता नहीं रहता था कि उनके अपने ही गृह-गोष्ठ की क्या स्थिति है। सन्तोषी, भगवदभक्त, साधुसेवी थे वे; किंतु ऐसे नि:स्पृह को ब्रजराज तो नहीं बनाया जा सकता था। यह दायित्व मध्यम कुमार नन्द ही ले सकते थे और उनके दोनों छोटे भाई उनका बहुत अधिक सम्मान भी करते थे। वस्तुत: नन्द ही अब पिता का दायित्व वहन कर रहे थे। उनको ही गोपों की, उनके गोष्ठों की चिन्ता रहती थी। उन्होंने सबकी सम्हाल करना स्वयं प्रारम्भ कर दिया था। सब गोपों का उनको स्नेह तथा सम्मान प्राप्त था। उस दिन पर्जन्य ने सब गोप-प्रमुखों से अनुमति ली और अपनी पगड़ी अपने मध्यम पुत्र नन्द के मस्तक पर बाँध दी। नन्द उस दिन ब्रजपति हो गये। गोप-प्रमुख सुमुख की कन्या यशोदा ब्रजरानी हो गयीं। यह उत्सव अब भी मेरे नेत्रों के सम्मुख प्रत्यक्ष होता लगता है। उस दिन गोकुल में गोपों ने सब पुरानी मर्यादाएँ तोड़ दीं। अन्यथा मुझे ज्ञात हो गया था कि नवीन ब्रजपति की स्वीकृति के रूप में गोपनायक केवल एक छोटा दधिपात्र उपहार देते हैं और गोकुल का ब्रजपति वृहत्सानु के अधीश्वर को भेंट भेजकर उनसे अपने पद की स्वीकृति प्राप्त करता है। इस बार वृहत्सानु के अधीश्वर महीभानुजी स्वयं अपने कुमार वृषभानु के साथ अपने मित्र एवं सहपाठी पर्जन्य के यहाँ पधारे थे। उनके कुमार वृषभानु सहपाठी तो थे ही, अत्यन्त घनिष्ठ मित्र थे नन्द के। पर्जन्य ने महीभानु से अनुमति माँगी अपने मध्यम कुमार को अपनी पगड़ी बाँधने की तो वे उठ खड़े हुए- 'नव ब्रजपति का प्रथम अभिनन्दन करने का अधिकार पहिले मेरा स्वीकार कर लो!' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अभिनन्द
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