नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
30. मल्लिका मौसी-सर्वप्रिय
माधवी चुटकी बजाने लगी और कनूँ अपने नन्हें कर फेंकता 'ता थेई, ता थेई थेई, तत्ता थेई' नृत्य करने लगा। इतना तालबद्ध नृत्य जन्म से जानता है यह। मैं अनजान में ही ताली बजाने लगी थी। इसके भाल पर अलकें लहरा रही थीं, किंकिणी के साथ नूपुर की रुनझुन कर फेंकता, नेत्र चपल-चपल नचाता यह नाच रहा था। यह अर्पूव शोभा देखने के लिए किसके नेत्र लालायित नहीं होंगे। 'ला दे!' लाल-लाल हथेली फैला दी इसने और मुझे भी हँसी आ गयी जब माधवी ने तनिक-सा नवनीत इसकी हथेली पर एक अँगुली से उठाकर गिरा दिया। इसकी फैली हथेली बिना नाचे भी माखन से भर देने को मन मचल उठे और माँगने पर नचाकर भी इतना-सा नवनीत! मैं माधवी को कुछ कह बैठने वाली थी, भले वह मेरी जेठानी लगती है; किंतु उसने नेत्र के संकेत से मुझे हँसकर मना किया कि मैं बोलूँ नहीं। 'इतना-सा? मैं नहीं लेता!' मोहन झल्लाया। 'यह मेरी स्वर्णपीता का नवनीत है।' माधवी ने मुख बनाकर कहा- 'तू नहीं लेगा तो मत ले। तनिक-सा नाचा तो नवनीत कितना मिलेगा? और नाच तो और दूँगी।' माधवी कितनी धृष्ट है। वह नवनीत-विन्दु भी इसकी हथेली से उठा लेने को हाथ बढ़ा चुकी थी। झट से इसने चाट लिया वह माखन और माधवी से उलझने लगा- 'और दे!' माधवी कहती है- दो बूँद दही या छाछ इनकी हथेली पर गोपियाँ गिरा देती हैं। उन्हें भी ऐसे ही चाट लेता है। दूर्वादल या मयूरपिच्छ मिलेगा तो सखाओं को, मैया तक को दिखाने दौड़ा जायगा। कम दिये बिना झगड़ेगा तो नहीं। तनिक बड़ा नवनीत-खण्ड, पूरी हथेली दही या छाछ तो इसे सन्तुष्ट कर देगी। इसके खीझने, झगड़ने में कितना रस-कितना आनन्द है!' यह हाथ खींचता है या वस्त्र नोचने लगता है खीझकर। इससे अधिक करे भी क्या? गोपियाँ खिझाती हैं और नवनीत, दही खिझा-खिझाकर खिलाती हैं। वृद्धाएँ कहती हैं कि इस नन्दलाल को किसी का आदेश टालना नहीं आता। प्राय: यह सबके काम कर देता है। किसी को बुलाओ तो हाथ पकड़कर उठा लावेगा। बस, ठहरता नहीं एक स्थान पर। आया और दो पल रुककर भागा। |
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