नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
4. महर्षि शाण्डिल्य-कुल परिचय
गोपराज पर्जन्य और उनके सब गोप अपनी पूरी सम्पत्ति मेरी ही मानते थे और सपरिवार सब मेरे सेवक थे। उन श्रद्धालुओं की कल्याण-कामना मेरे मन में बनी रहती थी, यह आश्चर्य की बात नहीं है। प्रेम तो परम-पुरुष को भी वश में कर लेता है, मैं तो सहज स्वभाव से सदय ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ और गोपों में-से प्रत्येक श्रद्धा की, प्रीति की मूर्ति था। गोप जाति में सगाई तो अनेक बार बच्चे के जन्मते ही हो जाती है। विवाह के लिए भी अधिक बड़े होने की प्रतीक्षा नहीं की जाती। ब्रजपति पर्जन्य के पुत्रों का विवाह शीघ्र हो गया। दोनों कन्याएँ भी उत्तम गोपनायकों को उन्होंने विवाह दीं। मुझे अपने इस अत्यन्त दीर्घजीवी देह के कारण अनेक बार दु:खी होना पड़ा है। मुझे स्पृहा होती है अपने साधारण आयु के यजमानों से। मरण और वार्धक्य विश्वस्त्रष्टा के वरदान हैं, जिनसे मैं बहुत दीर्घकाल तक वञ्चित रहूँगा। वार्धक्य उन वासनाओं से सहज परित्राण दे देता है, जिन्हें जीतने में हम मुनियों को कठोर श्रम करना पड़ता है। नेत्र, कर्ण, रसना, नासिका की शक्ति क्षीण हो जाती है। तृष्णा बढ़ी न हो तो संसार के विषय स्वयं छूट जाते हैं और अन्तर्मुखता अप्रयास सिद्ध हो जाती है। मृत्यु तो देह के बन्धन से भी मुक्ति ही है। स्वयं बने रहो और अपने प्रियजनों का वियोग सहन करो, यह स्थिति कितनी कष्टकर है, इसे मैं बहुत अच्छी प्रकार अनुभव करता हूँ। |
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