नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
24. अतुला चाची-चिर-चपल
बालक भी कब क्या करें, कहाँ ठिकाना है। अभी उसी दिन ऐसे ही मैं जीजी के साथ इन्हें ढूँढ़ते गोष्ठ पहुँची तो धक से हो गया हृदय। दाऊ, कन्हाई, भद्र, विशाल सब एक-एक बछड़े की पूँछ पकड़े खड़े थे। बछड़े इधर-उधर हो रहे थे और बालक डगमगाते पदों से उनके साथ चल रहे थे। गोपियाँ, सेविकाएँ खड़ी-खड़ी हँस रही थीं। इनमें किसी को नहीं सूझता था कि नीलमणि गिर पड़ेगा, इसे चोट लग सकती है। व्रजेश्वरी देखते ही दौड़ी थीं और मैं भी। इन्होंने श्याम और भद्र को एक साथ अंक में उठा लिया। मैं दाऊ को हाथ पकड़कर ले आयी। सब गोमय में लिप्त हो रहे थे। आज मेरा हृदय आशंका से अधिक धड़कने लगा है। मुझे वह दूसरा दिन स्मरण आ गया। मैं जीजी के पीछे इन सबको ढूँढ़ते गोष्ठ पहुँची। दाऊ, नीलमणि, भद्र ये तीन ही थे। तीनों ने तीन-तीन, चार-चार बछड़ों की पूँछ एक साथ दोनों हाथों में पकड़ रखी थी। बछड़े बैठे रहे होंगे और इन्होंने जाकर उनकी पूँछ एक साथ पकड़ ली होंगी। वे हड़बड़ाकर खड़े हो गये होंगे। अब एक बछड़ा एक ओर, दूसरा दूसरी ओर और तीसरा तीसरी ओर भागना चाहता है। वे अपनी पूँछ छुड़ाना चाहते हैं और ये चञ्चल इधर से उधर खिंच रहे हैं, किलकारी ले रहे हैं। ऐसे में किसी बछड़े के खुर इनके पैरों पर पड़ सकते हैं। ये गिर सकते हैं और...... भगवान नारायण कुशल करें। मेरे नीलमणि के किसलय कर इतने अरुण हो आये थे कि देखकर मैं अपने अश्रु नहीं रोक सकी। यह चपल अपने हाथों से अंक में आने पर मेरे अश्रु पोंछने लगा था। कोई गोपी, कोई सेविका उस दिन समीप नहीं थी, अन्यथा उस पर मुझे क्रोध आता। आज मैं जीजी से आगे झपटकर गोष्ठ-द्वार पर पहुँची और पहुँचते ही मैंने जीजी को संकेत किया ओष्ठ पर अँगुली रखकर कि वे मौन रहें। मेरा कन्हाई दूध पी रहा था। दूध पी रहा है दाऊ, भद्र और मधुमंगल भी। चारों अकेली कामदा के एक-एक स्तन मुख में लिये, सिर सटाये दूध पी रहे हैं। हम दोनों को चुपचाप देखना है यहीं से। तनिक-सी आहट हुई तो इनके दुग्ध-पान में बाधा पड़ेगी। कामदा का बछड़ा गौरव केवल एक मास का है। अत: अभी इसे गोप चरने नहीं ले जाते। वह क्या इधर-उधर फुदक रहा है। इन बालकों में किसी को भी सूँघता है और कूदने लगता है। ये उसकी माँ का मीठा दूध पी रहे हैं, इससे यह बहुत प्रसन्न प्रमुदित लगता है। |
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