नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
24. अतुला चाची-चिर-चपल
यह तो घुटनों सरकता था तब भी गोष्ठ के रंग बिरंगे गोबर, गोमूत्र की कीच में लथपथ हो लेता था और फिर हँसता-किलकता। मना करने पर मेरी, रोहिणी जीजी या व्रजेश्वरी के अंक में ही आने को हाथ उठा देता था। इसे अंक में लेने से कीच-सने वे वस्त्र- मुझे वे इतने प्यारे लगते हैं कि मैंने सम्हाल कर रख लिय हैं। वस्त्रों का मेरे पास कोई अभाव है कि मैं उन्हें धोऊँ। वे मेरे लाल की स्मृति है। यह बड़ा होगा तो अपनी माँ के वे कीचड़ सने वस्त्र देखकर कितना प्रसन्न होगा। यह एक वर्ष का हुआ तो प्रथम पावस में ही वर्षा में भीगने-भागने लगा था। प्रथम वर्षा का जल हानिकर होता है। उससे शरीर पर फोड़े-फुन्सियाँ उठ आती हैं। कठिनाई से इसे मैं अंक में लिये रोके रही थी। इसे और इसके सब सखाओं को जल बहुत प्रिय है। यह सब तो घुटनों सरकने लगे थे तब भी प्रांगण में थोड़ा-सा भी जल मिलते ही उसमें छपाछप करने पहुँच जाते थे। अब मोहन को आँगन में किसी के द्वारा भी स्नान कराना रुचता ही नहीं। ये सब बाहर भाग जाते हैं और भागते हुए स्नान करके प्रसन्न होते हैं। कन्हाई अवसर मिलते ही भाग निकलता है और दाऊ, भद्र, विशाल, तोक तक भागेगा। तोक और इसके साथी घुटनों सरकते भागेंगे। श्याम ऊपर मुख करके अपना छोटा-सा हाथ उठाकर बादलों को ऐसे बुलाता है, जैसे यह बिल्लियों को, मयूरों को अथवा मैया को या मुझे हाथ हिला-हिला कर बुलाता है और सचमुच इसके बुलाने पर मेघ आ जाते हैं। गोपियों को, रोहिणी जीजी को और मुझे भी इसकी मनुहार करते रहना पड़ता है- 'लाल! अभी मेघों को मत बुलाना! आँगन में अन्न डाला है सूखने के लिए।' नीलमणि शिशु है, यह कब तक स्मरण रख सकता है ऐसी बातें। यह भीगने-स्नान करने सखाओं के साथ बाहर आता है तो वेग से होती वर्षा भी मन्द पड़ने लगती है, यह मैंने देखा है। वेग से वर्षा हो रही हो तो ये सब बिना बाहर भागे मानते नहीं। बड़ी कठिनाई से इन्हें रोकना पड़ता है। व्रजेश्वरी को, रोहिणी जीजी को, मुझे इस पावस में बहुत सावधान रहना पड़ता है। इनको दिन में कितनी बार स्नान करना है- भीगना है, कुछ गणना रखनी है इन्हें? इनको कोई रोके नहीं तो दिन भर भीगते रहेंगे। |
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