नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
20. कुबला चाची-शैशव
दाऊ, वरूथप, विशाल, ॠषभ, भद्र, अर्जुन सब इससे सटकर बैठ जाते हैं और तोक, तेजस्वी, अंशु, देवप्रस्थादि को इसके समीप लिटा देना पड़ता है। ये सब कन्हाई के समीप किलकते रहते हैं। नन्दलाल पास रहता है तो इन्हें माता के स्तनपान का स्मरण ही नहीं आता। इनमें-से कोई तो कभी नहीं रोया। कृष्णचन्द्र बैठा-बैठा क्या देख रहा है? अरे, अतुला ठीक कहती है- यह अपने मुख के प्रतिबिम्ब को ही देख रहा है और उसे पकड़ने के प्रयत्न में है। हममें-से सभी को हास्य रोके रखना है। यह अब दाऊ से, अर्जुन से भी आग्रह कर रहा है इनके कन्धों पर अपने नन्हें कर रखकर, संकेत करके कि 'नीचे रत्नभूमि में जो दीख रहा है, उसे पकड़ो! वह मेरे हाथ नहीं आता।' मुझे तो प्रतिदिन प्रात∶ व्रजराज के भवन पहुँच ही जाना है। व्रज का नवयुवराज अब दोनों हाथों और घुटनों के सहारे सरकने लगा है। बहुत ही सुकुमार है। तनिक-सी दूर जाता है और फिर पेट के बल लेट जाता है। वहीं भूमि पर मस्तक रखकर पीछे देखता है। इसकी धूलि सनी अलकें, कर कपोल और उदर- किंतु उठता है और रुनझुन नूपुर करते, किंकिणी तथा कंकणों की झंकार गुँजाते फिर सरकने लगता है। थक जाते होंगे इसके मृणाल मृदुल बाहु। मेरा ही जी इसे अंक में उठा लेने को करता है; किंतु शिशु को कुछ श्रम करना ही चाहिए। इसको कुछ देर स्वतन्त्र क्रीड़ा करने देना उचित है। यह बार-बार कुछ चलता है और फिर लेट जाता है। अब यह बैठ गया है। कुछ पकड़ना चाहता है। अपने सामने चलती नन्हीं पिपीलिका को पकड़ने का प्रयत्न कर रहा है। यह चञ्चल चींटी इसकी पकड़ में ही नहीं आती। कितना प्रयत्नशील है। बडे़ भाई को बुला रहा है कि वह आकर इस भागती काली चींटी को पकड़ ले; किंतु दाऊ या विशाल कहाँ समझते हैं इसका संकेत। इसने पूरी हथेली धर दी चींटी पर, अब कहाँ जायगी? नीलमणि हथेली हटाकर देख रहा है, पर चींटी तो भूमि में है नहीं। लो, वह इसकी लाल-लाल हथेली पर ही दौड़ लगा रही है। अब हथेली उठाये ही किसी प्रकार बैठे-बैठे आ रहा है, हाँ-हूँ कर रहा है कि कोई यह काली वस्तु इसके हाथ पर से हटा तो दे। |
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