नद हरि तुमसौ कहा कह्यौ।
सुनि सुनि निठुर वचन मोहन के, कैसै हृदय रह्यौ।।
छाँड़ी सनेह चले मंदिर कत, दौरि न चरन गह्यौ।
दरकि न गई बज्र की छाती, कत यह सूल सह्यौ।।
सुरति करत मोहन की बातै, नैननि नीर बह्यौ।
सुधि न रही अति गलित गात भयौ, मनु डसि गयौ अह्यौ।।
उन्है छाँड़ि गोकुल कत आए, चाखन दूध दह्यौ।
तजे न प्रान ‘सूर’ दसरथ लौ, हुतौ जन्म निबह्यौ।। 3135।।