नख सिख अंग-अंग-छबि देखत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


नख सिख अंग-अंग-छबि देखत, नैना नाहिं अघाने।
निसि वासर इकटकही राखे, पलक लगाइ न जाने।।
छवि तंरग अगिनित सरिता जल, लोचन तृप्ति न माने।
'सूरदास' प्रभु की सोभा कौ, अति व्याकुल ललचाने।।2126।।

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