नंद महर उपनंद बुलाए।
बहु आदर करि बैठक दीन्हीं, महर महर मिलि सीस नवाए।।
मनहीं मन सब सोच करत हैं, कंस नृपति कछु माँगि पठाए।।
राज-अंस-धन जो कछु उनको, बिन मांगै हम सो दै आए।।
बूभत महर बात नंद महरहिं, कौन काज हम सबनि बुलाए।।
सूर नंद यह कही गोपनि सौं, सुरपति-पूजा के दिन आए।।815।।