(नंद जू) आदि जोतिषी तुम्हरे घर कौ, पुत्र-जन्म सुनि आयौ।
लगन सोधि सब जोतिष गनिकै, चाहत तुमहिं सुनायौ।
संबत सरस बिभावन, भादौं, आठैं तिथि, बुधवार।
कृष्न पच्छ, रोहिनी, अर्द्ध निसि, हर्षन जोग उदार।
वृष है लग्नभ, उच्च के निसिपति, तनहिं बहुत सुख पैहैं।
चौथैं सिंह रासि के दिनकर, जींति सकल महि लैहैं।
पचएँ बुध कन्या कौ जौ है, पुत्रनि बहुत बढै़हैं।
छठएं सुक्र तुला के सनि जुत, सत्रु रहन नहिं पैहैं।
ऊँच नीच जुवती बहु करिहैं, सतऐं राहु परे हैं।
भाग्य-भवन मैं मकर मही-सुत, बहु ऐस्वर्य बढ़ैहैं।
लाभ-भवन मैं मीन बृहस्पति, नवनिधि घर मैं ऐहैं।
कर्म-भवन के ईस सनीचर स्याम बरन तन ह्वैहैं।
आदि सनातन परबह्म प्रभु, घट-घट अंतरजामी।
सो तुम्हरैं अवतरे आनि कै, सूरदास के स्वामी।।86।।