नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि -कृष्णदास

नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि -कृष्णदास

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नंद घरुनि वृषभान घरुनि मिलि कहति सबन गनगौर मनाओ।
नये बसन आभूषन पहरो मंगल गीत मनोहर गाओ॥1॥
करि टीकौ नीकौ कुमकुम कौ आंगन मोतिन चौक पुराओ।
चित्र विचित्र वसन पल्लव के तोरन बंदरवार बँधाओ॥2॥
घूमर खेलो नवरस झेलो राधा गिरिधर लाड लडावो।
विविध भाँति पकवान मिठाई गूँजा पूआ बहु भोग धराओ॥3॥
जल अचवाय पोंछि मुख वस्तर माला धरि दोऊ पान खवाओ।
कृष्णदास पिय प्यारी को आनन निरखि नैन मन मोद बढावो॥4॥

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