नंद कौ लाल उठत जब सोइ।
निरखि मुखारबिंद की सोभा, कहि काकैं मन धीरज होइ?
मुनि-मन हरत, जुवति-जन केतिक, रतिपति-मान जात सब खोइ।
ईषद हास दंत-दुति बिगसति, मानिक-मोती धरे जनु पोइ।
नागर नवल कुँवर बर सुंदर, मारग जात लेत मन गोइ।
सूरदास प्रभु मोहनि-मूरति, ब्रजबासी मोहे सब लोइ।।210।।