नंद के लाल हरयौ मन मोर।
हौ बैठी मोतिनि लर पोवति, काँकरि डारि चले सखि भोर।।
बंक बिलोकनि, चाल छबीली, रसिकसिरोमनि नवल किसोर।
कहि काकौ मन रहै स्रवन सुनि, सरस मधुर मुरली की घोर।।
बदन गुबिंद इदु कै कारन, तरसत नैन, बिहग चकोर।
'सूरदास' प्रभु के मिलिबे कौ, कुच श्रीफल हौ करति अँकोर।।1871।।