नंद कह्यौ घर जाहु कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग असावरी


नंद कह्यौ घर जाहु कन्हाई।
ऐसे मैं तुम जाहू कहूँ जनि, अहो महरि सुत लेहु बुलाई।।
सोइ रहौ मेरी पलिका पर, कहति महिर हरि सौं समुझाई।
वरष दिवस कौ महा महोच्छव, को आवै धौं कौन सुभाई।।
और महर-ढिग स्याम बैठि कै, कीन्हौ एक विचार बनाई।
सुपनै आजु मिल्यौ मोकौं, इक बड़ौ पुरुष अवतार जनाई।।
कहन लग्यौ मोसौं ये बातै, पूजत हौ तुम काहि मनाई।
गिरि गोवर्धन देवनि कौ मनि, सेवहु ताकौं भोग चढ़ाई।।
भोजन करै सवनि के आगैं, कहत स्यासम यह मन उपजाई।
सूरदास प्रभु गोपनि आगैं, यह लीला कहि प्रगट सुनाई।।819।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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