नंद कह्यौ कह माँगौं स्वामी। तुम जानत सब अंतरजामी।।
अष्ट सिद्ध नवनिधि तुम दीन्हौ। कृपा-सिंधु तुम्हरोई कीन्हौ।।
कुसल रहैं बलराम कन्हाई। इनहीं कारन करत पुजाई।।
देवनि के मनि गिरिवर तुम हौ। जहँ-तहँ व्यापक पूरन सम हो।।
तुम हरता तुम करता धर के। देखि थकित नर-नारि नगर के।।
बड़ौ देवता स्याम बतायौ। प्रगट भयौ सब भोजन खायौ।।
सूर स्याम कैं जोइ मन आवै। सोइ सोइ नाना रुप बनावै।।915।।