नंद करत पूजा

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी



नंद करत पूजा, हरि देखत।
घंट बजाइ देव अन्‍हवायौ दल चंदन लै भेटत।
पट अंतर दै भोग लगायौ, आरति करी बनाइ।
कहत कान्‍ह, बाबा तुम अरप्‍यौं, देव नहीं कछु खाइ।
चितै रहे तब नंद महरि-मुख सुनहु कान्‍ह की बात।
सूर स्‍याम देवनि कर जोरहु, कुसल रहै जिहिं गात।।261।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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