नंद-धाम खेलत हरि डोलत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



नंद-धाम खेलत हरि डोलत।
जसुमति करति रसोई भीतर, आपुन किलकत बोलत।
टेरि उठी जसुमति मोहन कौं, आवहु काहैं न धाइ।
बैन सुनत माता पहिचानी, चले घुटुरुवनि पाइ।
लै उठाइ अंचल गहि पोंछै, धूरि भरी सब देह।
सूरज प्रभु जसुमति रज झारति, कहाँ भरी यह खेह?।।111।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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