नंद-घरनि आनंद भरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



नंद-घरनि आनंद भरी, सुत स्याम खिलावै।
कबहिं घुटुरुवनि चलहिंगे, कहि, बिधिहिं मनावै।
कबहिं दंतुलि द्वै दूध की, देखौं इन नैननि।
कबहिं कमल-मुख बोलिहैं, सुनिहौ उन बैननि।
चूमति कर-पग-अधर-भ्रू, लटकति लट चूमति।
कहा बरनि सूरज कहै, कहँ पावै सो मति।।74।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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