नंदसुवन ब्रजभावते संग फाग मिलि खेलौ (जू)।
हमैं तुम्हे यह जानबी नव जुवति दल पेलौ (जू)।।
रसिकसिरोमनि साँवरे स्रवन सुनत उठि धाए।
बल समेत सब टेरि कै घर घर सखा बुलाए।।
बिबिध भाँति बाजे बजे ताल मृदंग उपंग।
डिमडिम झालरि झिल्लरी आउझ बर मुहचंग।।
उततै नवसत साजि कै निकसी सब ब्रजनारी।
झुंडनि आई झूमिकै गावति मीठी गारी।।
केसरि कुमकुम घोरि कै भाजन भरि भरि धाई।
छूटी सनमुख स्याम के करनि कनकपिचकाई।।
इतही स्याम गोपाल सँग भरे महा रस खेलै।
चोवा मृगमद घोरि के जुवति जूथ कर झेलै।।
सोभित ग्वालनि बृंद मैं हरि हलधर की जोरी।
इतही चतुर चंद्रावली सब गुन राधा गोरी।।
सौंह किये ललिता कहै पग न पिछौडे डारै।
उत नायक इत नाइका को जीतै को हारै।।
टिके परस्पर देखियै खेल मच्यौ अति भारी।
इत उत हटक न मानही चोख परे नर नारी।।