नंदराइ सुत लाड़िले 3 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री
अघासुर-बध



देखि महाबन भूमि हरे, तृन द्रुम कृत कीने।
कहन लगे सब अपुन मैं सुरभी चरैं अधाइ।
मानहुँ पर्वत-कंदरा, मुख सब गए समाइ।
जब मुख गए समाइ, असुर तब चाब सकोरयौ।
अंधकार इमि भयौ मनहुँ निसि बादर जोरयौ।
अतिहिं उठे अकुलाइ कै, ग्वाल बच्छ सब गाइ।
त्राहि-त्राहि करि कहि उठे परे कहाँ हम आइ।
धीर-धीर कहि कान्ह, असुर यह, कंदर नाहों।
अनजानत सब परे अघा-मुख-भीतर माहीं।
जिय लाग्यौ यह सुनत हीं, अब को सकै उबारि।
वा तैं दूनी देह धरी, असुर न सक्यौ सम्हारि।
सबद करयौ आघात, अघासुर टेरि पुकारयौ।
रह्यौ अधर दोउ चापि, बुद्धि बल सुरति बिसारयौ।
ब्रह्म द्वार सिर फोरि कैं, निकसे गोकुलराइ।
बाहिर आवहु निकसि कै, मैं करि लियौ सहाइ।
बालक बछरा धेनु सबै मन अतिहिं सकाने।
अंधकार मिटि गयौ देखि जहँ-तहँ अतुराने।
आए बाहिर निकसि कै, मन सब कियौ हुलास।
हम अजान कत डरत हैं, कान्हौ हमारैं पास।

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