नंदनँदन वृंदावन चंद -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


नंदनँदन वृंदावन चंद।
जदुकुल नभ, तिथि द्वितिय देवकी, प्रगटे त्रिभुवन बंद।।
जठर कुहू तै बिहरि बारुनी दिसि मधुपुरी सुछंद।
बसुद्यौ संभु सोस धरि आन्यौ, गोकुल-आनँद-कंद।।
ब्रज प्राची, राकातिथि जसुमति, सरस सरद रितु नंद।
उडगन सकल सखा संकर्षन, तम-कुल-दनुज निकंद।।
गोपी-जन-चकोर-चित बाँध्यौ, निमि निवारि पल द्वंद।
‘सूर’ सुदेस कला पोडस, परिपूरन परमानंद।।1795।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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